
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
जगन्नाथपुरी – गुरु पूर्णिमा का त्यौहार प्रतिवर्ष आषाढ़ माह में पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है , जो इस वर्ष आज है। यह हिन्दू धर्म के लिये महत्वपूर्ण पर्व है जो भारत के पौराणिक इतिहास के महान संत ऋषि व्यास की याद में मनाया जाता है। इस दिन हिन्दू धर्मग्रन्थ महाभारत के रचयिता गुरु वेदव्यासजी का जन्म भी हुआ था , उन्होंने मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था और सभी पुराणों की रचना की थी। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये श्री सुदर्शन संस्थानम , पुरी शंकराचार्य आश्रम के मीडिया प्रभारी अरविन्द तिवारी ने बताया कि गुरू की महिमा का वर्णन करना तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। गुरू का ज्ञान और शिक्षा ही जीवन का आधार है , गुरू के बिना जीवन की कल्पना भी अधूरी है। गुरू जगत व्यवहार के साथ साथ भव तारक , पथ प्रदर्शक भी होते हैं। गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है। गुरु शब्द में ‘गु’ का अर्थ है अंधेरा और ‘रु’ का अर्थ है अंधकार को दूर करना। गुरू हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। अज्ञानरूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रुपी प्रकाश से जीवन को सफलता के उजाले की ओर ले जाने का कार्य गुरु के आशीर्वाद से ही संभव होता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिये एक श्लोक के अनुसार — यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु अर्थात् जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिये है वैसी ही गुरु के लिये भी होती है , बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है। ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है , किन्तु गुरु के लिये कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका , गुरु को सभी ने माना है।
गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण का त्यौहार है। यह त्यौहार गुरु के सम्मान का त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु की पूजा करने से उनके शिष्यों को गुरु की दीक्षा का पूरा फल मिलता है। मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विशेष योगदान है। गुरू शिष्य का संबंध सेतु के समान होता है , उनकी कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है। रामचरित मानस की पहली चौपाई में गुरु महिमा बताते हुये तुलसी दास जी कहते हैं- बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा। अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू। अर्थात – मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूं , जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है। इतिहास गवाह है कि अवतारी महापुरूषों को भी गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
गुरु की महिमा को स्वीकार करने वालों के लिये शब्दों की नहीं भाव की प्रधानता होती है , गुरु के प्रति समर्पण की जरुरत होती है। गुरु पूर्णिमा एक अवसर होता है जब हम गुरु के प्रति सम्मान सत्कार और अपनी तमाम भावनायें उन्हें समर्पित करते हैं। इस दिन गुरु पादुका पूजन , गुरु दर्शन करें। नेवैद्य , वस्त्रादि भेंट प्रदान कर दक्षिणादि देकर उनकी आरती करें तथा उनके चरणों में बैठकर उनकी कृपा प्राप्त करें।