
रतनपुर (बिलासपुर): सनातन परंपरा के अनुसार इस वर्ष 22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व प्रारंभ हो चुका है और समूचा देश शक्ति की उपासना में लीन है। भारतीय पंचांग अनुसार इस बार तृतीया तिथि में वृद्धि होने के कारण शारदीय नवरात्रि कुल 10 दिनों से युक्त है जो कि अत्यंत मंगलदायक माना जा रहा है। नवरात्रि के इस महापर्व में छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले के कटघोरा पाली – मार्ग पर 45 किलोमीटर की दूरी में स्थित धर्म नगरी रतनपुर जहां आदि शक्ति दुर्गा माता मां महामाया देवी के नाम से विराजित है। महामाया की नगरी में रतनपुर में अभी नवरात्रि में शक्ति के आराधना की धूम मची हुई है। मां महामाया जिसकी गणना देश के 52 शक्ति पीठों में होती है। मान्यता अनुसार महामाया के रूप में महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती की सेवा की जाती है। देवी के तीनो स्वरूप के रूप में विराजित होने के कारण महामाया देवी के दरबार में दूर दूर से भक्त गण मनोकामना लेकर आते है साथ ही मनोकामना की सिद्धि हेतु अर्जी भी लगाते है।भक्तों पर दया करने वाली भक्त वत्सला मां महामाया देवी भी अपने भक्तों की सभी मुराद पूरी करती है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि में सिद्ध पीठ मां महामाया देवी के मंदिर में 31 हजार मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित की गई है। जिसमें 5 हजार घृत ज्योति, 24 हजार 800 तेल ज्योति एवं 1800 आजीवन ज्योति कलश शामिल है। यहां माता की कृपा और सिद्धि इतनी है कि न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश एवं विदेश से भी माता के भक्त मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित कराने माता के दरबार में आते है। नवरात्रि पर्व में माता के दरबार में दिन रात बराबर भक्तों की भीड़ बनी रहती है। माता अपने भक्तों को पूरे 9 दिन दर्शन देती है। मंदिर प्रबंधन के अनुसार नवरात्रि के दिनों में केवल रात्रि में कुछ समय को छोड़कर पूरे दिन माता के मंदिर का पट भक्तों के लिए खुला रहता है।

मनोकामना ज्योति हेतु केवल तांबे के कलश का ही उपयोग
सोने और चांदी के अतिरिक्त यदि बात करें अन्य धातुओं की तो सभी की अपेक्षा केवल तांबा ही सबसे शुद्ध एवं पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि मां महामाया के दरबार में जितने भी मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित किए जाते है उन सब में तांबे से बने कलश का उपयोग किया जाता है।
दिव्य स्वरूप एवं श्रृंगार में देती है माता दर्शन
वैसे तो मां महामाया का श्रृंगार हर दिन किया जाता है किंतु नवरात्रि के पर्व में केवल प्रथम दिवस प्रतिपदा के दिन मां का राजश्री श्रृंगार कर माता के दरबार का पट भक्तों के लिए खोल दिया जाता है फिर 9 दिन तक माता का श्रृंगार माला से किया जाता है और इस माला का श्रृंगार नवमी को उतारा जाता है तत्पश्चात पुनः माता का राजश्री श्रृंगार बनारसी साड़ी एवं सोने चांदी के आभूषणों से किया जाता है। जहां नवरात्रि में अन्य दिन माता के मंदिर का पट रात्रि में 12 से 04 बजे के लिए बंद होता है वहीं सप्तमी तिथि पर पूरी रात भक्तों के लिए माता का दरबार खुला रहता है।
छत्तीसगढ़ की प्राचीन अधिष्ठात्री देवी मां महामाया: आचार्य मथुरा प्रसाद दुबे
रतनपुर के बड़ी बाजार निवासी श्री राधा कृष्ण मंदिर के पुजारी एवं आचार्य पं. मथुरा प्रसाद दुबे ने चर्चा के दौरान बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य जिसे प्राचीन काल में दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था, वही दक्षिण कोशल जो भगवान श्री राम की माता कौशल्या का जन्म स्थान व श्रीराम का ननिहाल रहा है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ राज्य प्रारंभ से ही न केवल प्राकृतिक संपदा बल्कि आध्यात्मिक संपदा से भी पुष्ट है। प्राचीन काल में दक्षिण कोशल जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के नाम से प्रचलित है जिसकी राजधानी रतनपुर हुआ करती थी। उस समय माता महामाया को कोसलेश्वरी अर्थात पुराने दक्षिण कोशल क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी के नाम से जाना जाता था। कालान्तर में यही माता महामाया के नाम से प्रसिद्ध हुई और आज विश्व भर की आराध्या देवी भी है। उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि रतनपुर नगरी के कण कण में देव तत्व का वास है किंतु यहां प्रमुख रूप से श्री रामटेकरी, बूढ़ामहादेव, लखनी देवी, श्री गिरिजा हनुमान, जगन्नाथ मंदिर, भैरव बाबा सहित अनेक देवी देवताओं के मंदिर है जिनमें माता महामाया प्रमुख है जिसके नगर की रक्षा श्री गिरजाबंध हनुमान एवं श्री भैरव नाथ करते है।यही कारण है कि रतनपुर शहर के निवासी श्री भैरव बाबा को मां महामाया के कोतवाल के नाम से भी पुकारते है।
श्रद्धालुओं के सुविधा हेतु महामाया मंदिर ट्रस्ट समिति निभाती है अहम भूमिका
रतनपुर में हर साल दोनों नवरात्रि में लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते है श्रद्धालुओं के रहने खाने पीने सुरक्षा एवं सुगमता पूर्ण दर्शन का पूरा ध्यान मंदिर ट्रस्ट समिति रखती है जिसके लिए स्थानीय प्रशासन सहित पुलिस सुरक्षा बल से भी सहयोग लिया जाता है।